Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, १, ७. ]
बंध संतपरूवणार बंध कारणाणि
[ ११
अताणुबंधिकोध-माण- माया-लोभा-इत्थिवेद-तिरिक्खाउ - तिरिक्खगदी - णग्गोह- सादिखुज्ज-वामणसरीरसंठाण वज्जणारायण-नारायण-अद्धणारायण - खीलिय सरीरसंघडण - तिरिक्खगदी पाओग्गाणुपुब्बी-उज्जोव - अप्पसत्थविहायगदि-दु मग दुस्सर- अणादेज-णीचागोदाणं बंधस्स अणंताणुबंधिचउक्क्स्स उदयो कारणं । कुदो ! तदुदयअण्णय वदिरेगेहिमेदासिं पयडीणं बंधस्स अण्णय-वदिरेगाणं उवलंभादो । अपच्चक्खाणावरणीयकोध-माण- मायालोभ मणुस्सा उ-मणुस्सगदी-ओरालि यसरीर अंगोवंग- वज्जरि सहसंघडण मणुस्सगदीपाओगाणुपुत्रीणं बंधस्स अपच्चक्खाणावरणचदुक्कस्स उदओ कारणं, तेण विणा एदासिं बंधाणुवलंभा' । पच्चक्खाणावरणीय कोध-माण- माया - लोभाणं बंधस्स एदासिं चेव उदओ कारणं, सोदएण विणा एदासिं बंधाणुवलंभा । असादावेदणीय-अरदि-सोग - अथिर-असुहअजसकित्तीणं बंधस्स पमादो कारणं, पमादेण विणा एदासि बंधाणुवलंभा । को पमादो णाम ? चदुसंजलण- णवणोकसायाणं तिब्वोदओ । चदुन्हं बंधकारणाणं मज्झे कत्थ
लोभ, स्त्रीवेद, तिर्यचायु, तिर्यचगति, न्यग्रोध, स्वाति, कुब्जक और वामन शरीरसंस्थान, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच और कीलित शरीरसंहनन, तिर्यचगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुभंग, दुस्वर, अनादेय और नीच गोत्र, इन पञ्चीस प्रकृतियोंके बन्धका अनन्तानुबन्धीचतुष्कका उदय कारण है, क्योंकि उसीके उदय के अन्वय और व्यतिरेकके साथ इन प्रकृतियोंका भी अन्वय और अतिरेक पाया जाता है ।
अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभ, मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक शरीरांगोपांग, वज्रऋषभसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, इन दश प्रकृतियोंके बन्धका अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका उदय कारण है, क्योंकि उसके बिना इन प्रकृतियोंका बन्ध नहीं पाया जाता ।
प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चार प्रकृतियों के बन्धका कारण इन्हींका उदय है, क्योंकि अपने उदयके बिना इनका बन्ध नहीं पाया जाता । असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति, इन छह प्रकृतियों के बन्धका कारण प्रमाद है, क्योंकि प्रमाद के बिना इन प्रकृतियोंका बन्ध नहीं
पाया जाता ।
शंका - प्रमाद किसे कहते हैं ?
समाधान --- चार संज्वलन कषाय और नव नोकपाय, इन तेरह के तीव्र उदयका है
1
शंका- पूर्वोक्त चार बन्धके कारणोंमें प्रमादका कहां अन्तर्भाव होता है ?
१ कप्रतौ ' बंधाणुवमादो' इति पाठः ।
नाम प्रमाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org