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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१३ परमाणु पुद्गलपर्यायनिरूपणम् ७९३ संख्येयप्रदेशावगाहः पुद्गलः संख्येय प्रदेशावगाढस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पट्स्थानपतितः अवगाहनार्थतया हि स्थानपतितः, स्थित्या चतु:स्थानपतितः, वर्णादिभिरुपरितनचतुःस्पर्शे श्च पट्स्थानपतितः असंख्येयप्रदेशावगाढानां पृच्छा गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एव मुच्यते-असंख्येयप्रदेशावगाढानामनन्ताः पर्ययाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा कि संख्यातप्रदेशाचगाढ पुदगलों के अनन्त पर्याय है ? (गोयमा ! संखिजपएसोगाढे पोग्गले संग्विज्ज. पएसोगाढस्स पोग्गलस्स दवट्टयाए तुल्ले) गौतम! संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल दुसरे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा से षट्रस्थानपतित होता है (ओगाहट्ठयाए दुट्ठाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा से डिस्थानपतित है (ठिईए च उट्टाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (वण्णाइ उचरिल्ल चउफासेहिं य) वर्णादि से और उपर्युक्न चार स्पर्शो से (षट्स्थानपतित है
(असंखेजपएसोगाढाणं पुच्छा ?) असंख्यात प्रदेशों में अवगाढपुदगलों के पर्यायों की पृच्छा ? (गोयमा! अगंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं अते ! एवं बुच्चइ-असंखिज्जपएसोगाढाणं अणंता पज्जया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किसकारण से ऐसा कहा जाता है कि असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ पदगलों के चुचइ-संखिज्ज पाण्सोगाढाणं अणंता पन्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् । को ये ४ह्यु छ । सात प्रदेशमा पुगताना मनन्त पर्याय छ ? (गोयमा । संखिज्जपएसोगाढे पोग्गले संखिजपएसोगाढम्स पोग्गलम्म व्ययाए तुल्ले) છે ગૌતમ ! સંખ્યાત પ્રદેશાવગાઢ પુદ્ગલ બીજા સંખ્યાત પ્રદેશાવગાઢ पुगतया द्रव्यनी अपेक्षाये तुल्य छ (पएमटाए छट्टाणवडिप) प्रशानी - शारीपस्थान पतित थाय छ (ओगाहणट्टया दुट्टण वडिप) मानी अपेक्षा विस्थान पतित छ (ठिईए चढाणवडिग) स्थितिथी यतु:स्थान पतित (वण्णाइ उवरिल्ल चउफासे हिय) पहिया म२ ६५युत बार पोथी ५४थान पतित छे.
(असंखिज्ज पाण्मोगाढाणं पुच्छा ?) मध्यात प्रशामा अगाट पुगताना पर्यायानी २४ा ? (गोयमा अणता पन्जवा पण्णता) हे गौतम । अनन्त ५याय ४६॥ छ (से केणद्वेण भंते । एवं बुच्चइ अमंखिजपासोगाढाणं अणंता पन्जवा पण्णत्ता ?) शा २४ अम वाय अन्यात अशामा अगाट पुगताना मनन्न ५याय छ ? (गोयमा! अमविज्जपएसो
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