Book Title: Pragnapanasutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1172
________________ प्रज्ञापनास्त्रे ११३८ युष्कास्ते नियमात् त्रिभागावशेषायुष्काः पारभविकायुप्यं प्रकुर्वन्ति, तत्र खलु ये ते सोपक्रमायुष्कास्ते स्यात् त्रिभागावशेपायुप्काः पारभविकायुप्यं प्रकुर्वन्ति, स्यात् त्रिभागत्रिभागावशेषायुप्काः पारभविकायुप्यं प्रकुर्वन्ति, स्यात् त्रिभागत्रिभागत्रिभागावशेपायुप्काः पारभविकायुप्यं प्रकुर्वन्ति, अप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकाः द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियानामपि एवश्चैव, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त ! उपक्रम रहित आयु वाले (तत्थ णं) उनमें से (जे ते निरुवक्कमाउया) निरूपक्रम आयुवाले हैं । (ते) वे (नियमा) नियम से (तिभागावसेसाउया) आयु का तीसरा भाग शेप रहने पर (परभवियाउयं) परमव की आयु को (पकरेंति) बांधते हैं ? (तत्थ णं जे ते सोवक्कमाउया ते) उनमें जो सोपक्रम आयु वाले हैं वे (सिय) कदाचित् तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरें ति) आयु का तीसरा भाग शेप रहने पर परभव की आयु बांधते हैं। (सिय) कदाचित् (तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउं पकरे ति) तीसरे भाग का तीसरा भाग आयु शेप रहने पर परभव की आयु बांधते हैं। (सिय) कदाचित् (तिभागतिभागतिभागावसेसाउया पर भवियाउयं पकरेंति) तीसरे भाग के तीसरे भाग का तीसरा भाग रहने पर परभव की आयु बांधते हैं। __(आउ-तेउ-चाउ-वणप्फइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदियाण वि एवं चेव) अप्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, वनस्पतिकायिकों, दीन्द्रियों त्रीन्द्रियों, चौहन्द्रियों का कथन भी इसी प्रकार । कमाउया) नि३५४म मायुवामा छ (ते) तेगा (नियमा)नियमयी (तिभागावसेसा उया) मायुष्यने। जी मा शेष २उता (परभवियाउयं) ५२ सपना मायुष्यने (पकरेंति) साधे छे (तत्थणं जे ते सोवक्कमाउया) तमामा २ सोप४म मायुपामा छ (ते) तो (सिय) ४ायित् (तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरें ति) आयुष्यने त्रीने मामी २हेत ५२ अपनी आयुष्यने सांधे छ (सिय) ४ायित् (तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरें ति) मायुष्यना त्रीत भागना श्री HIn पाश्री रहेता ५२मना मायुध्यने मांधे छ (सिय) ४४ायित् (तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरें ति) त्रीत माना जीत लागनी श्री ला मायुशेष रहेता ५२मवर्नु आयुष्य माधे छ (सिय) ४ायित् (तिभाग तिभाग) (आउ-तेउ-वाउ-वणप्फहकाइयाणं वेइंदिय-तेइंदिय-चउरिं दियाण वि एवं चेव) माथि, यि, वायुयी , वनस्पतिपिठी, दीन्द्रियो, श्री.

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