Book Title: Pragnapanasutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1186
________________ ११५२ प्रहापमासूत्रे गः प्रकुर्वन्तः संग्दयेय गुणाः, पडूभिगकर्षः प्रकुर्वन्तः संख्येयगुणाः एवं पञ्चभिः संख्येयगुणाः, चतुर्भिः संख्येयगुणाः, त्रिभिः संख्येयगुणाः, द्वाभ्यां संख्येयगुणाः, एकेन आकर्षण प्रवर्वन्तः संख्येयगुणाः. एवम् एतेन अमिला पेन यावत्अनुभावनामनिधत्तायुष्यम् , एवम् एते पडपि अल्पवहुत्वदण्डका जीवादिका भणितव्याः, इति प्रज्ञापनायां व्युत्क्रान्तिकंपदं पप्ठं समाप्तम् ।। माणा) आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं । (सत्तहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा संखेज्जगुणा) सात आकर्षों से बांधने वाले संख्यातगुणा हैं । (छहिं आगरिसेहिं पकरेभाणा संखेज्जगुणा) छह आकर्पो से बांधनेवाले संख्यातगुणा हैं । (एवं पंचहिं संखिज्जगुणा) पांच आकर्षों से वांधने वाले संख्यातगुणा (चउहि संग्विज्जगुणा) चार से बांधने वाले संख्यात. गुणा (तीहि संखेनगुणा) तीन से चाँधने वाले संख्यातगुणा (दोहिं संखिज्जगुणा) दो से बांधने वाले संख्यातगुणा (एगेणं आगरिसएणं पगरेमाणा संखेज्जगुणा) एक आकर्प से वांधने वाले संख्यातगुणा हैं। (एवं) इस प्रकार (एतेणं अभिलावेणं) इस अभिलाय से (जाव अणुभाग नामनिहत्ताउयं) यावत् अनुभाग नामनिधत्तायु का बंध करते ।(एवं एते छप्पिय अप्पावहुदंडगा) इस प्रकार ये छहाँ अल्प बहत्व संबंधी दंडक (जीवादीया भाणियव्वा) जीव से आरंभ करके कहने चाहिए (इति पण्णवणाए वक्कंतियपयं छटुं समत्तं) इस प्रकार प्रज्ञापना में व्युत्क्रान्ति नारक छठा पद समाप्त हुआ ॥१६॥ निहत्ताउय) aala नाम नित्तायुने (अहिं आगरिसेहिौंपकरेमाणा) 18 माथा मांधवावा छे. (सत्तहिं आगरिसेहिं परेमाणा संखेज्जगुणा) सात २५ थी मांधा वा यातगण छ (छहिं आगरिसेहिं पकरमाणा संखेज्जगुणा) छ 4 थी मांधावणा सध्यात छे (एवं पंचहि संखिजगुणा) पांय साथी माधवावाणा ज्यात छे (चउहि संखिजगुणा) यारथी मांधवा सभ्यात ॥ (तिहि संखेजगुणा) ऋगुथी पापा सभ्यात आला (दोहिं संखिज्ज गणा) मेथी मांधा सध्याता छ. (एगेणं आगरिसेएणं पकरेमाणा संखेज्जगुणा) मे४ मा४५ थी मांधा सध्यातमा छे. (एवं) से प्रारे (एतेणं अभिलावेणं) 24. अनिसाथी (जाव अणुभागनामनिहत्ताउयं) यावत् मनुभाग नाम निधत्तायुने। ५५ ४२ छे (एवं एते छप्पिय अप्पा बहुदंडगा) मा श्रारे मा ७ ५५ हुत्व सपा ४४ (जीवादीया भाणियव्वा) 4थी मार म शन. ४ मध्ये (इति पण्णवणाए वकंतिय पयं छटुं समत्तं) मा ४२ प्रज्ञापનામાં વ્યુત્કાતિ નામક છઠું પદ સમાપ્ત થયું છે ૧૬

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