Book Title: Pragnapanasutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रेक्षापनासूत्र अंतं करेंति, वाणमंतरजोइसियदेमाणिय सोहम्मीलाणा य जहा असुरकुलारा, नवरं जोइसियाण प वेमाणियाण य चयंतीति अभिलावो कायव्वो, सर्णकुमारदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहा असुरकुमारा, नवरं एगिदिएसुण उववज्जति, एवं जाव सहस्सारयदेवा, आणय जाव अणुस्तरोक्वाइया देवा एवं चेव नो तिरिक्खजोगिएसु उववज्जति मणुस्सेसु पज्जन्त संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतिय मणूसेसु उववजंति, दारं .सू० १४॥ ___ छाया-पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त ! अनन्तरम् उद्धृत्य-कुत्र गच्छन्ति, कुत्र उपपद्यन्ते ? गौतम ! नैरयिकेपु यावत् देवेषु उपपद्यन्ते, यदा नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, कि रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकेपु उपपद्यन्ते ? यावत् अधःसप्तमपृथिवीनैरयिकेषु उपपद्यन्ते, गौतम ! रत्नप्रभापृथवीनैरयिकेषु उपपद्यन्ते, यावत् अघःसप्तम
तिर्यग्योनिक आदि की वक्तव्यता शब्दार्थ-(पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया ण मंते ? अणंतरं उघहित्ता कहिं गच्छति ?) भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्य च साक्षात् उद्वर्तन करके कहां जाते हैं ? (कहिं उववजति ?) कहां उत्पन्न होते हैं (गोयमा ! नेरइएसु जाव देवेस्तु उववज्जति) गौतम ! नारकों में यावत् देवो में उत्पन्न होते हैं ?
(जइ नेरइएस्सु उवचज्जति) यदि नारको में उत्पन्न होते हैं (किं रयणप्पभापुढविनेरएलु उववज्जति ?) क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों में उत्पन्न होते हैं ? (जाव अहेलत्तमापुढविनेरइएसु उवेनज्जति ?) यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी के नारकों में उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! हे गौतम ! (रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जति) रत्नप्रभा पृथ्वी
- તિર્યાનિક આદિની વક્તવ્યતા शा-(पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! अणंतरं उव्यद्वित्ता कहिं गच्छति?) (भगवन् । पयन्द्रिय तियय साक्षात् वतन ४शन ४या तय छे ?) (कहिं उववज्जति ?) या Guन्न थाय छ ?
(गोयमा । नेरइएसु जाव देवेसु उववज्जति) गौतम । नाभा यावत् हेवा. મા ઉત્પન્ન થાય છે ___ (जइ नेरइएसु उववज्जति) ले नारीमा उत्पन्न थाप छे. (किं रयणापमा पुढवि नेरईएसु उववजति ?) शु२नमा पृथ्वीना नाम: ५न्न थाय छ ? (जाव अहेसत्तमा पुढवि नेरइएसु उववज्जति ?) या५त् २१५. सातमी पृथ्वीना नाम जपन्न थाय छ १ (गोयमा !) 3 गौतम ! (रयणप्पभापुढवि

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