Book Title: Pragnapanasutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1161
________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ६ सू.१५ तिर्य ग्योनिकायुद्वर्तनानिरूपणम् १९२७ ज्योतिष्कवैमानिकेष निरन्तरम् उपपद्यन्ते यावत् सहस्रारः कल्प इति, मनुष्याः खलु भदन्त ! अनन्तरस् उद्धृत्त्य कुत्र-गच्छन्ति कुत्र उपपद्यन्ते ? किं नैरयिकेपृ उपपद्यन्ते यावत् देवेषु उपपद्यन्ते ! गौतम ! नैरयिकेष्वपि उपपद्यन्ते यावर देवेष्वपि उपपद्यन्ते, एवं निरन्तरं सर्वेषु स्थानेषु प्रच्छा, गौतम ! सर्वेपु स्थानेषु उपपद्यन्ते न किञ्चिदपि-प्रतिषेधः कर्तव्यः, यावत् सर्वार्थसिद्ध देवेप्यपि उपपप्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिकों में सीधे उत्पन्न होते हैं (जाव सहस्सारो कप्पोत्ति) यावत् सहस्त्रार कल्प पर्यन्त ऐसा ही समझ लेवें ' (मगुस्सा भंते ! अणंतरं उच्चहित्ता कहिं गच्छंति ?) भगवन् ! मनुष्य अलन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं ? (कहिं उववज्जति ?) कहां उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरइएस्सु उववज्जति) क्या नारकों में उत्पन्न होते हैं ? (जाव देवेलु उववज्जंति) थावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! नेरइएस्तु वि उववज्जति जाव देवेसु वि उववज्जंति) गौतम ! नारकों में भी उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं (एवं) इस प्रकार (निरंतर) लगातार (सब्बेसु ठाणेसु पुच्छा) लभी स्थानों में प्रश्न समझना चाहिए (गोयमा ! सव्वेसु ठाणेसु उववज्जति) गौतम ! सभी स्थानो में उत्पन्न होते हैं (न किंचिवि पडि सेहो काययो) कुछ भी निषेध नहीं करना चाहिए (जाव सव्वट्ठसिद्धदेवेसु वि उववजनि) यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों में भी उत्पन्न होते हैं (अत्थे छ. (एवं वाणमंतरजोइसिय वैमाणिएसु निरंतरं उध्वजंति) मे रे पानव्यत२ न्याति, वैमानिकीमा सीघin 4-थाय छे. (जाव सहस्सारो कापोत्ति) યાતુ સહસ્ત્રાર ક૯પ. પર્યત એ પ્રમાણે સમજવું. __ (मणुत्साणं | अणंतरं उवट्टिना कहिं गच्छंति ?) भगवन् । मनुष्य पछी वतन ४ ४यां तय छ ? (कहिं उववज्जंति) ४यां उत्पन्न थाय छ ? (किं नेरइएसु उववज्जति) शुनामा 4-1 थाय छे.? (जाव देवेसु उववज्जति) यावत् देवमा ५न्न थाय छ ? (गोयमा | नेरइएसु वि उववज्जति जाव देवेसु वि उववजति) गौतम ! नामा ५ अत्यन्न थाय छे, यावत् वामां ५ ५न्न थाय छ, (एवं) ते (निरंतर) वि२त (सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा) या स्थानामा प्रश्न सभाले. (गोयमा । सव्वेसु ठाणेसु उत्रवज्जति) गौतम ! मां स्थानमा 64-थाय छे. (न किंचि वि पडिसेहो काययो) isपिए निषेध न ४२ नये. (जाव ०व्वदृसिद्धदेवेसु वि उववज्जति) यावत् सपथ सिद्ध वाम ५५ पन्त थाय छे. (अप्पेगइया) (सिझंति) सिद्ध थाय छे. (बुज्जति) 3 4 पास ४३ छ. (मुच्चंति) मुत

Loading...

Page Navigation
1 ... 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196