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प्रमैयबोधिनी टीका पद ६ सू.११ पञ्चन्द्रियतिर्य ग्योनिकायुपपातनि० १०७७ तिर्यग्योनिकेभ्योऽपि मनुष्येभ्योऽपि, देवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ते कि रत्नप्रभापृथिवी नरयिकेभ्यो यावत् अघःसप्तमपृथिवी नरयिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! रत्नाप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते यावत्-अधासप्तमपृथिवी नैरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा तिर्यग्योनिकेश्य उपपद्यन्ते ? किम एकेन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते ? यावत् पञ्चेन्द्रियेभ्य उत्पद्यन्ते ? गौतम ! एकेन्द्रिये(किं नेरइएहितो उववज्जति?) क्या नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (जाव) यावत् (किं देवेहितो उववज्जति) क्या देवो से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा!) गौतम ! (नेरइएहितो वि) नारको से भी (तिरिक्खजोणिएहितो वि) तिर्यग्योनिको से भी (मणुस्लेहितोवि) मनुष्यों से भी (देवेहितो वि उववज्जति) देवों से भी उत्पन्न होते हैं। (जइ नेरइएहि तो उववज्जंति) यदि नारकों से उत्पन्न होते हैं, (किं रयणप्पभापुढविनेरइएहितो) क्या रन्नप्रभा पृथ्वी के नारको से (जाव) यावत् (अहेसत्तमा पुढवि नेरइएहिंतो उववज्जति) अधःसप्तमी पृथ्वी के नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (रयणप्यभापुढवि नेरइएहितो वि उववजति) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों से भी उत्पन्न होते हैं (जाव) यावतू (अहे सत्तमापुढविनेरइएहितो वि उववज्जति) अधःसप्तमी पृथ्वी के नारको से भी उत्पन्न होते हैं __(जह तिरिक्खओणिएहिंतो उववजति) यदि तिथंचों से उत्पन्न होते हैं (किं एनिदिएहितो उववज्जंति) क्या एकेन्द्रियों से उत्पन्न नेरइएहिं तो उववज्ज ति?) शुनाथी उत्पन्न थाय छे ? (जाव) यावत् (कि देवेहिंतो उववज्ज ति) शु वोथी सत्पन्न याय छे ? (गोयमा ।) गौतम । (नेरइएहितो वि) नाथी पर (तिरिक्खजोणिएहि तो वि) तिय याथी पY (मणुस्सेहितो वि) मनुष्याथी ५y (देवेहि तो वि उववज्ज ति) यी पy ઉત્પન્ન થાય છે
(जइ नेदइएहिं तो उववज्जति) यहि नारथी Gurन थाय छे (किं रयणप्पभा पुढवि नेरइएहितो) शु २त्नप्रभा पृथ्वीना ना२3थी (जाव) यावत् (अहे. सत्तमा पुढवि नेरइएहि तो उववज्जति) २५५: सातमा पृथ्वीना नाथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा!) 3 गौतम । (रयणप्पभापुढविनेरइएहि तो उबवजति) रत्न प्रमा पृथ्वीना नारथी ५ ५न्न थाय छे (जाव) यावत् (अहे सत्तमा पुढवि नेरइएहितो वि उजवज्जति) २५५: ससम पृथ्वीनानाथी ५Y G५न्न थाय छ
(जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति) यहि ति याची त्पन्न वाय छ (कि एगिदिएहिं तो उववज्जति) शु. मेन्द्रियोथी यन्न थाय छ (जाव