________________
प्रमैययोधिनी टीका पद ६ सू.१० असुरकुमारायुपपातनिरूपणम् १०५९ एतेपामपि भणितव्यः, नवरम् पर्याप्तकापर्याप्तकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, शेपं तच्चैव, यदा मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किम् समूच्छिममनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, गौतम ! द्वाभ्यामपि उपपद्यन्ते, यदा गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, अकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, शेष यथा नैरयिकाणां, नवकहना चाहिए (नवरं) विशेष यह कि (पज्जत्तग-अपज्जत्तरोहितो वि उघवज्जंति) पर्याप्तको और अपर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं । (से सं तं चेव) शेष वही।
(जइ मणुस्सेहितो उववज्जति) यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। (किं समुच्छिममणुस्सेहिंतो उववज्जति) क्या संमूर्छिममनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (गन्भवतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । (गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति) हे गौतम ! दोनों से उत्पन्न होते हैं। _ (जइ गम्भवकंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति) यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । (किं कम्मभूमिगगभवतियमणुस्सहिंतो उवव. ज्जंति) क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (अकम्मभूमिगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ?) या अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (सेसं जहा नेरक्याणं) शेष जैले नरकों का (नवरं) विशेष (अपज्जत्तएहितो वि उववज्जति ) अपर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं। (एतेसि पि भाणियव्यो) सान। ५५त ५१ ४ (नवरं) विशेष से है (पज्जत्तग-अपज्जत्तरोहितो वि उववज्जति) ५ । भने माथी ५५५ Guन थाय छे (सेसं तं चेव) शेष तर
(जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति) यहि मनुष्याथी ५५ ५न्न थाय छ (कि संमुच्छिममणुस्से हि तो उववज ति ?) शुस भूछि म भनुष्याथी अपन्न थाय छ ?
(गन्भवतियमगुस्सेहिं तो उबवज्जति ?) . मनुष्याथी ५-- थाय थाय छ ? (गोयमा! दोहितो वि उववजंति) गौतम ! गन्नथा Gurन थाय छ (जइ गम्भवक्कंतियमगुस्सेहिं तो उववज्जति) यहि refu भनुध्योथी उत्पन्न याय छ (किं कम्मभूमिगगन्भवतियमणुस्सेहि तो उबवज्जति ?) शुभ भूभि १ भनुध्याथी उत्पन्न थाय छे ? (अकम्मभूमिगगन्भवतिय मगुलेहितो उपवति ?) २५॥२ २५४म भूमि . मनुध्याथी पन्न थाय छ (सेनं जहा नेरईया गं) 21 २५ नाना (नवर) विशेष (अपज्जत्ता