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प्रमेयोधिनी टीका पद ५ सू१५ जघन्यगुणकालका दिपर्यायनिरूपणम्
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नववम् - अवगाहनार्थतया प्रदेशपरिट्ट द्भिः कर्त्तव्या यावद दशप्रदेशिकस्य नवप्रदेशाः वर्द्धिप्यन्ते, जघन्यगुणशीतानां संख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? तत् केनार्थेन - भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यगुणशीतानां संख्येयप्रदेशिकानामनन्ताः पर्ययाः प्रज्ञप्ताः गौतम ! जवन्यगुणशीतः संख्येयप्रदेशिको जघन्यगुणशीतस्य संख्येयप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे छट्टाणवडिए) विशेष यह कि वह स्वस्थान में स्थानपतित है ( एवं जाव दसपएसिए) इसी प्रकार दशप्रदेशी स्कंध तक कहना चाहिए (णवरं ओगाहण्याप पण्सवुडही काच्चा) विशेष यह कि अवगाहना की अपेक्षा से प्रदेशों की वृद्धि करनी चाहिए (जाव दसपएसियस्स नव पएसा वढिजति) यावत् दशप्रदेशी के नव प्रदेश बढ़ते हैं
( जहण्णगुण सीयाणं संखेज्जप एसियाणं पुच्छा) जघन्यगुण शीत संख्यात प्रदेशी स्कंधों की पृच्छा ?) गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं (सेकेण्डेणं भंते एवं वुच्चइ - जहण्णगुणसीयाणं संखेज्जप एसियाणं अनंतापज्जवा पण्णत्ता ?) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है संख्यातपदेशी जघन्यगुण शीत के अनन्त पर्याय हैं ? (गोगमा ! जह
गुणसीए संखेज्जपएसिए जहण्णगुणलीयस्त संखेज्जप एसियस्स दाए तुल्ले) जघन्यगुण शीत संख्यात्प्रदेशी स्कंध जघन्यगुण शीत संख्यातप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है ( पसाए
अरे (नवरं सट्टाणे छट्टा णव डिए) विशेष भेटे ते स्वस्थानमा पट्स्थान पतित छे ( एवं जाव दस एसिए) न प्रारे हश प्रदेशी अन्ध सुधी महेवु लेखे ( नवरं ओगाहणट्टयाए पएसबुड्ढी कायव्य) विशेष मे मे अवगाहनानी अयेक्षा प्रदेशानी वृद्धि ४२वी लेग्यो (जाव न्म पएसियास नवपएसा बढिज्जति) यावत् दृश अहेशीना नव प्रदेश वधे छे. (जहण्णगुणमीयाणं संखेज्ज पसियाण पुच्छा १) धन्य गुण शीत संध्यात प्रदेशी सुन्धोनी पृरछा ? (गोयमा । अणता पज्जवा पण्णत्त ?) हे गौतम! अनन्त पर्याय (सेकं भते । एवं बुच्चइ-जहण्णगुणसीयाणं संखेनपएसियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) u કારણે હે ભગવન્ એવુ કહેવાય છે કે સખ્યાત પ્રદેશી જઘન્ય ગુ; શીતના अनन्त पर्याय छे ? (गोयमा । जहण्णगुणनीय संखेन्ज पर लिए जहण्णनीयम्म संखेज्जएसएस व्याप तुल्के) धन्य गुषु शीत मध्यात प्रदेशी शुन्ध જઘન્ય ગુણ શીત સખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધી દ્રવ્યની અપેાએ નુશ્ય છે (વ