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प्रज्ञापनासत्रे
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चउन्चिसं मुहुत्ता' जवन्येन एक समयम्, उत्कृष्टेन चतुर्विंशति मुहूर्तान यात् रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकाः उद्वर्तनया विरहिताः प्रज्ञता', 'एवं सिद्धवज्जा उवणा वि भाणियव्त्रा जाव अणुत्तरोववाइयत्ति' एवम् पूर्वोक्तोपपावरीत्या सिद्धवर्जासिद्धवर्जिता, उद्वर्तनापि भणितव्या वक्तव्या यावत्-शर्कराप्रमापृथिवी नैरयिकादि असुरकुमारादि दश भवनपति - पृथिवीकायिकादि पञ्चकेन्द्रियविकडे न्द्रियसंमृच्छि मग व्युत्क्रान्ति पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकमनुप्यवानव्यन्तरज्योतिष्कसीधर्मादि हा दशवैमानिकदेव व ग्रैवेयक विजयादि पञ्चानुत्तरोपपातिका इत्यन्तम्, किन्तु 'वरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अहिलावो काययो' नवरम् - पूर्वोक्तापेक्षया विशेषस्तु ज्योतिष्कवैमानिकेषु च्यवनमिति अभिलापः कर्तव्यः, न तु उद्वर्तना इत्यभिलापः, ज्योतिष्कवैमानिकानां च्यवनस्यैव संभवेन तेपामुहूर्तनाया अभावादित्याशय', 'दारं' द्वितीयं चतुर्विंशति मुहूर्तविषयकं द्वारं समाप्तम् ।
विरह का जघन्य काल तक एक समय और उत्कृष्ट काल चौबीस मुहूर्त्त है। उद्वर्त्तना के विरह का यही काल सिद्धों को छोड कर अनुतरोपपातिक विमानों तक सर्वत्र कह लेना चाहिए अर्थात् शर्कराप्रभा आदि के नारकों, असुर कुमार आदि दश भवनपतियों, पृथिवी कायिक आदि पांच एकेन्द्रियों विकलेन्द्रियों से मूर्छिम तथा गर्भजतिर्यच पंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वानव्यन्तरों, ज्योतिकों, सौधर्मादि द्वादश कल्पोपपन्न देवों नवग्रैवेयक देवों और विजय आदि पांच अनुत्तरविमानों के देवों तक यही उतना के विरह का काल कहना चाहिए किन्तु ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में उद्धर्त ना, शब्द का प्रयोग न करके च्यवन, शब्द का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि इन दोनों जातियों के देवों का उद्वर्तन नहीं होता है, पर च्यवन होता है, अर्थात् ये देव मरकर ऊपर से नीचे आते हैं, नीचे से ऊपर नहीं जाते ॥३॥ चतुर्विंशति द्वार ममाप्त
હના જઘન્ય કાળ એક સમય અને ઉત્કૃષ્ટ કાળ ચેાવીસ મુદ્ભૂત છે. ઉતનાના વિરહુના આજ કાળ સિદ્ધોને છેડીને અનુત્તરૌપપાતિક વિમાનેા સુધી સત્ર કહેવા જોઇએ. અર્થાત્ શરાપ્રભા આઢિના નારા, અસુરકુમાર આદિ દશ ભવનપતિયા, પૃથ્વીકાયક આદિ પાંચ એકેન્દ્રિા, વિકલેન્દ્રિયા, સમ્મિ તથા ગભ જ તિય ચ પચેન્દ્રિય, વાનબ્યન્તા, જ્યેાતિલ્કે, સૌધર્માદિ ખાર કલ્પાપન્ન ધ્રુવે, નવ પ્રવેયક દેવે, અને વિજય આદિ પાચ અનુત્તર વિમાનાના વે સુધી આજ ઉનાના વિરહના સમય કહેવેા જોઇએ. પરન્તુ ચૈાતિષ્ક અને વૈમાનિક દેવામાં ઉતના' શબ્દના પ્રયાગ ન કરીને ચ્યવન’ શબ્દના પ્રયોગ કરવે જોઇએ, કેમકે એ અન્ય જાતિના દેવેની ઉદ્ભવના