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[ ३ ] भव पायक, नगसों मत पटकै । फिर पीछे पछतायगो, औसर जब सटकै ॥ जिननाम० ॥२॥ एक घरी है सफल जो, प्रभु गुन रस गटकै । कोटि वरष जीयो वृथा, जो थोथा फटकै ॥ जिन नाम० ॥ ३ ॥ द्यानत उत्तम भजन है, लोज मन रटकै । भव भवके पातक सबै, जै हैं तो कटकै ॥ जिननाम० ॥४॥
(५) राग काफी। तू जिनवर स्वामी मेरा, मैं सेवक प्रभु हों तेरा ॥टेक॥ तुम सुमरन बिन मैं बहु कीना, नाना जानि बसेरा । भाग उदय तुम दरसन पायो, पाप भज्यो तजि खेरा ॥ तू जिनवर० ॥१॥ तुम देवाधिदेव परमेसुर, दीजै दान सवेरा । जो तुम मोख देत नहिं हमको, कहां जायँ किंहि डेरा ! - ॥ मात तात तू ही बड़ भाता, तोसौं प्रम घनेरा । द्यानत तार निकार जगततै, फेर न वै भवफेरा ॥ ॥ तू जिनवर० ॥३॥
(६) राग काफी धमाल। सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज निज, पर पर जाना ॥टेक॥ छहों दरवतै भिन्न जानक,