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विद्या की हो उन्नति, और नाश हो अज्ञान का। प्रेम से पूरित हों सारे, ९ मा सल्यानका ॥ शान्ति० ॥२॥ खोटे कामों से बचें, और तेरी थक्ति मन वसैं । शान्ति पावें पानी सारे, दुःख सबके ही नशै ।। शान्तिः ॥३॥ सारी विद्याओं को सीखें, ज्ञानाबरनी नाश कर । धर्म क्रिया नित्यकरपूजन सामायिक ध्यानधर ॥ शांति०॥४॥ कोगीमानो माया, वो लोभी हम में से कोई न हो । सप्त विश्नों से बचें, और छोड़ देवे मोह को॥शान्ति० ॥५॥ कर्म बाठों कारने में, मन लगा रहने सदा । होवे सभी पुरुषार्थी उपकार में चित रह लगा ॥ शान्ति०॥६॥ सत्संग अच्छे में रहें, और जैन मारग पर चलें। तेरे ही रहवें उपासक, सब कुकर्मों से टलें।शान्ति० ॥७॥
जैनी जवाहरलाल को, बिनती प्रभू स्वीकार हो । होवे सुधार समाज का, भारत का बेड़ा पार हो ।।शांति० ॥८॥
भजननं०८(अर्हन्त देव से प्रार्थना)
ग़ज़ल अहन्त देव तुम से, यह मेरी प्रार्थना है। जोहर अनादि से, जो मुझ में भरा हुआ है।