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बनजाऊ फेवना में, श्रीपाल जैसा सरा ॥ खातिर वतन के ज़रदूं मैं भामाशाह जैसा । बहवदी मुल्क की में हो सर्फ मेग पैसा ।। सेवक बन गुरु का, कुमारपाल जैसा । श्रेयांस की तरह से दूं दान में भी वैसा ॥ ५ ॥ गुरु आत्माराम मानिंद, चर्चाधर्म फैलाएं। रहकरके ब्रह्मचारी, अज्ञान को हटादूं । दिक्षा के वास्ते में, ऐलान कृष्ण सा हूँ। गुण ग्रहण की भी आदत, उनकीसी में बनायूँ ।। खातिर वतन के अपना, सर्वस्व में लगाएं। गफलत की नींद से में, हरएक को जगाएं ॥ ६ ॥ दुनियां के प्राणियों को, रस्ता धर्म बताकर । सेवा करूं धन की, तन मन सभी लगाकर ।। साबितकदम रहूं मैं गरचे कोई सतावे । खुश हो तमाम सहलं, पेशानी खम न खाये।' इस तन से सर जुदा हो, और जान तक भी जाये। लेकिन धर्म मेरे मुतलक हर्फ न आये ॥ खिदमत करूं मुलक की, और धर्म को बढ़ाऊं। जैनी धर्म का डंका चहुंओर में बजाऊं।। ७॥
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