Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 386
________________ ( ६२ } का दुनिया में यह है मज़ा | ( विरोधी) - मत रंडी नचा मत रंडी नचा, नरकोंमें तुझको यह देगी पाँचा । फिजूल करो बरवाद रुपैया ज़रा तो सोचो भाई । देख देख सन्तान तुम्हारी बिगड़ जाय अन्याई | मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ॥ १ ॥ ( नचाने० ) तालीम सीखने रंडी वर औलाद हमारी जावे, सभी बात में ताक़ बने फिर कहीं ख़ता ना खावे । ( विरोधी) रंडी की खातिर जो देखे मन में उनके उठें उमंग रंडी रंडी नचा मत० ॥ ३ ॥ सो नारी ललचावे, फैशन बनावे | मत ( नचाने० ) समधी के दरवाजे सीने रंडी आय सुनावे | दे जवाब समधन जब उसको बाग वाग होजावे ॥ जरा रंडी नचा० || ' ॥ ( विरोधी ) नाच देखने के शौकीनो ज़रा सुनो दे कान । रुपया तुम्हारेसे कुरवानी होवे वेपरमान ॥ मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ॥ ५ ॥ ( नचाने०) हम रुपया रंडी को देते ना कुछ कहते भाई । गान सुनै सो आनंद पावै खूब शान्ती छाई ॥ जरा रंडी नचा० ॥ ६ ॥

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