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जैन संसार में सुप्रसिद्ध तेरापंथाम्नाय संरक्षक व प्रचारक बालब्रह्मचारी श्री १०८ बावाजी दुलीचंदजी महाराज कृत
द्वितीय २ जैन ग्रंथोंका प्रकाश ।
जैनागार प्रक्रिया |
इसमें श्री १००८ देवाधिदेवके प्रतिविम्वकी प्रतिष्ठा कराने वाले सेठ के लक्षण, मूर्ति बनानेकी विधि, जिनमंदिर बनानेकी विधि, जैन गृहस्थीके याचार आदिका वर्णन बहुत विस्तार के साथ है । बढ़िया कपड़ा लगा हुआ २ गने और आठ पृष्ठ के जुज़ सिले हुए २२० ग्रंथ का मूल्य सिर्फ २) डा० म० (३)
पृष्ठ के
धर्मोपदेश रत्नमाला ।
इसमें २२ अभक्ष, अकृत्रिम जिनमंदिर, मृत्यु महोत्सव, निर्वाण भक्ति, ज्ञान प्रकाश, चौवीसठाणा, जैन यात्रा दर्पणका वर्णन अपने पूर्ण अनुभव से लिखा है, पृष्ठ संख्या बड़े प्रकार २२० ऊपर नीचे अच्छे कपड़ेके २ गत्ते और ग्राठ २ पृष्ट के जुज़ सिले हुए महान ग्रंथका मूल्य सिर्फ २) डा० म० (३)