________________
(८८) यही सब छोड़ जाना है ।। जरा तो सोच० ॥२॥ न भाई बंधु है कोई, न कोई आशना अपना । वखूबी गौर कर देखा, तो मतलव का जमाना है ।। जरा तो सोच० ॥३॥ रहो नित याद में प्रभुकी, अगर अपनी शफा चाहो । अबस दुनियां के धंधों से, हुआ क्यों तू दिवाना है ।। जरा तो सोच० ॥ ४ ॥
- ७४
( भजन वैरागी) काल अचानक ले जायगा,गाफिल होकर रहनाक्यारे।।टेक॥ बिनहू तोक नाहि वचावे, तो सुभटन का रखना क्यारे । काल अचानक० ॥१॥ रंच सवाद करन के काजे, नरकन में दुख भरना क्यारे ॥ कुलजन पथिकन के हित काजे, जगत जालमें परना क्यारे । काल अचानक० ॥२॥ इन्द्रादि कोऊ नाहि वचावे,और लोकका शरना क्यारे । निश्चय हुआ जगत में मरना, कष्ट परे तो डरना क्यारे॥ काल अचानक० ॥ ३ ॥ अपना ध्यान करता खिरजावे, तो करमन का हरना क्यारे । अब हित कर आलस तज बुध जन, जन्म जन्म में जरमा क्यारे।। काल अचानक० ॥४॥