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७५ ( मारवाड़ी पञ्चायत का उपदेशक को जवाब ) फुरसत नहीं म्हनें ले हम एकरी, थेरस्ते लागो । टेक ॥ थाका सिरसा ज्ञान सुणावा, अठै मोकला श्रावे । म्हाने नहीं फुरसत मरने की, आकर पाछे जावो जी ।। थे रस्ते० ।। १ ।। म्हाने नहीं सुहावे थांकी बातां तुसज्यो रीती, किन बातांका करो सुधारा म्हे नही करां अनीती ।। जी थे रस्ते लागो० ॥२॥ खाली बैठा थां लोगो ने निवरी बातां सूझे, जगह २ थे फिरो रवड़ता, पण नही कोई पूछे ।। जी थे रस्ते लागो० ॥ ३॥ हुआ अनोखा मंडल वाला, नई चलावे चाला । म्हें नहीं त्यागी रीत बड़ांकी, चाल पुरानी चाला ॥ जी थे रस्ते लागो० ॥ ४॥ रुको थासे बांच लियो है, थे पाछे लेनायो । फेरे अठे आवन के ताई मत तकलीफ उठावो । जी थे रस्ते लागो०॥५॥
(भजन उपदेशी) प्यारो ज़रा विचारो, कहता जमाना क्या है । गफलत की नीद त्यागो, देखो जमाना क्या है ।। टेक ।। विद्या की धूम छाई, चहुं ओर मेरे भाई । विद्या विना तुम्हारा, जीना जिलाना क्या है।। प्यारे जरा विचारो॥१॥