Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 416
________________ ( १२ ) यदन पूरनचन्द्र निरखे सकल मनवांछित फले ॥ १ ॥ मुझ आज आतम भयो पावन आज विन विनाशिया, संसार सागर नीर निवच्यो अखिल तत्वं मक्काशिया । अ भई कमला किंकरी मुझ उभय भव निर्मल उये, दुख जरो दुर्गति वास निवरयो आज नव मंगल भये ॥ २ ॥ मन हरण सूरति हर प्रभु की कौन उपमा लाइये, मम सकल तन के रोम हुलसे हर्ष और न पाइये । कल्याण काल प्रत्यक्ष प्रभु लखि कौन उपमा लाइये, मम सकल तन में भये आनंद हर्ष र न समाइये || ३ ॥ भर नयन निरखै नाथ तुमको और वांछा ना रही, मम सब मनोरथ भये पूरन रंक मानो निधि लई । अव होउ भव भव भक्ति तेरी कृपा ऐसी कीजिये, कर जोड़ भूधरदास विनवै यही वर मोहि दीजिये ॥ ४ ॥ ८० ( विनती पं भागचंदजी कृत ) दोहा --- सिद्धारथ प्रियकारणी, नंदन वीर जिनेश । शिव कर बंदू अमित गति, कर्ता नृप उपदेश ॥ १ ॥ (पञ्चपरमेष्टी की स्तुति) गीताचंद 1 मनुज नाग सुरेन्द्र जाके ऊपर छत्र त्रय धरें, कल्याण पञ्चकमोद माला पाय भव भ्रम तम हरे । दर्शन अनंत

Loading...

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427