Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 414
________________ (६०) काले गंवार तुमको, विद्या विना बताते । डूवी तुम्हारी इज्जत, तुमको ठिकाना क्या है ।। प्यारो जरा० ॥ २ ॥ सन्तान किसकी तुमहो, पुरखा तुम्हारे कैसे । इतिहास कह रहा है, मेरा वताना क्या है ॥ प्यारे जरा० ॥ ३ ॥ शिक्षा अगर न दोग, मरख यों ही रहोगे। संतान होगी दुखिया, मेरा जताना क्या है। प्यारें ॥ ४॥ विद्या के जो हितेच्छू उनके वनो सहाई । नुक्तों में द्रव्य प्यागे, विरथा लगाना क्या है ॥ प्यारो जरा विचारो० ॥ ५ ॥ उठके कमर कसो अब, विद्या का चौक बांधो, भारत चमन खिले तय । सोना सुलाना क्या है ॥ प्यारे जरा विचारो० ॥६॥ 99 (भजन उपदेशी) उठाके आंख अब देखो, ज़माना कैसा आया है। संभालो देशकी हालत, अंधेरा कैसा छाया है ॥ टेक ।। मेरे प्यारो अव विचारो, अब दरिद्री होगया भारत । मई विद्या कला कौशल, धर्म थी .सब भुलाया है ॥ उठाके श्रांख० ॥१॥ ज़माना एक था यहां पर, मिले था अन्न भरका । तुम्ही देखो अकालो ने, हमें आ आ सताया है। उठाके० ॥ २ ॥ शरीरों से गई ताकत, परिश्रम है नहीं __हमम । गई हिम्मत की सव बातें, पड़ा रहना सुहाया हे ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427