Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 411
________________ ( ८७ ) अव भूखों मर रहे है, दाना नहीं मुयस्सर । इक दिन कि देश था ये, गौहर फिसां हमारा || इस फूट ने० ॥ ३ ॥ सातों विलायतों में, मशहूर होरहे थे । अव कौन जानता है नामो निशान हमारा || इस फूट ने० ॥ ४ ॥ इल्मो हुनर में यक्ता, यह देश हो रहा था । चरचा था जा वजा ये, हर दो जुत्र हमारा || इस फूट ने० ॥ ५ ॥ अब पास क्या रहा है, हुए हैं तीन तेरह । वो लद गया खजाना, वो कारवां हमारा || इस फूट ने० ॥ ६ ॥ भूलेंगे याद तेरी, हरगिज न फूट दिलसे । बरबाद कर दिया है, सब खानुमां हमारा || इस फूट ने० || ७ || पन्ना तू वक रहा है, जाने जुनू में क्या क्या । आसान सव करेगा, वो महरवां हमारा || इस फूट ने० ॥ ८ ॥ 1 ७३ ( संसार की अनित्यता ) जरा तो सोच अय गाफिल कि दमका क्या ठिकाना है । निकल तन से गया चेतन, तो सब अपना बिगाना है ॥ टेक ॥। मुसाफिर तू है और दुनियां, सराय है भूल मत गाफिल । सफर परलोक का आखिर, तुझे परदेश जाना है || जरा तो सोच० ॥ १ ॥ लगाता है वस दौलत पै, क्यों तू दिल को अब नाहक । न जावे संग कुछ हरगिज,

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