Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 410
________________ { ८६ ) अंजन से चोर तारे, श्रीपाल उदधि उवारे | जल ते उरग बचाये, धरनेन्द्र पद ते पांये || पारस पुकार० ॥ ३ ॥ संकट पड़ा सिया को, अगनी से जल किया जो । मुनि मान तुंगराई, बंधन तुरत छुड़ाई || पारल पुकार० || ४ | सीके अनेक जीवा, सुमिरन अरहन्त देवा | तारक है नाम थारा, तो क्या गुनाह हमारा || पारस पुकार ||५|| भविजन शरण तुम्ही हो, कर्मन हरन तुम्ही हो | हारन तरन तुम्ही हो, शिव सुखकरन तुम्हीं हो || पारस०||६|| देखे कुदेव सते, फिरते जगत को ठगते । क्रोधी कोई लुभ्यारे, विषयी कोई शिकारे । तुमही दोष पाये, कहां लो तुमरे गुन गांऊ महिमा कहो तुम्हारी, कीजे दया हजारी || पारस पुकार० ॥ ७ ॥ · ७२ ( भजन कूट के विषय में ) इस फुट ने बिगाड़ा हिन्दोस्तां हमारा, व खाक में मिलाया ये वोस्तां हमारा ॥ टेक ॥ हर कौम ने चखा है, इस फल के जायके को । इस से वचा न कोई, पीरो जवां हमारा || इस फूट ने० ॥ १ ॥ इतनी करी तरक्की, इस नख्त ने यहां पर । खाली रहा न कोई कोनो मकां हमारा || इस फूट के० || २ |

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