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( ६६ ) इसमें कुछ इज्जत सरासर बेहयाई है ।। टेक ॥ निगाहे बद से देखें वाप बेटा और भाई सब, कहो यह मा हुई भावी वहन अथवा लुगाई है । हया और० ॥१॥ दिखा कर नाच और रुपया उनसे दिला कर के, अरे अन्याइयो बच्चों को क्या शिक्षा दिलाई है । हया० ॥२॥ लखें कोठे झरोखों से तुम्हारे घर की सब नारी, असर क्या नेक दिलपै पेदा होता भाई है। हया और० ॥३॥ यह खातिर देख उसकी सबके दिल में आग लगती है, है श्रापस में यह कहती वाह क्या उमदा कमाई है। हया
और शर्म० ॥४॥ कभी विछुवे न नथ बाली हमें स्वामी ने वनवाई, मगर इस वेवफा औरत को दी सारी कमाई है । हया० ॥५॥ हुई खातिर कभी ऐसी न जैसी इसकी होती है, वनी वेगम पड़ी दिन रात तोड़े चारपाई है । हया और शर्म० ॥६॥
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( वेश्या निषेध ) मत वेश्या से प्रीति लगायो जी ॥ टेक ॥ लाखो हजारों घर गारत हुए है नालिश फरादी, कुरकी फैलादी नीलामों की होय मनादी । हा। मत वेश्या०॥१॥ लाखों हजारों प्राणी भूखे मरे है धनको खोकर, निर्धन