________________
( ६४ ) (नचाने०) सुनी नसीहत तेरी भाई मन में हुआ विचार ।
रुपया तवा होके क्या, जाना होगा नर्क मंझार ॥
जरा सची वता जरा सी बता० ॥ १४ ॥ (विरोधी) सत्य कहूँ मैं नर्क पड़ोग्रे सुनलो रंडी वालो।
कदै जवाहर जैनी तुम से कसम धर्म को खालो ।
मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ॥ १४ ॥ (नचाने०) सुनकर शिज़ा तेरी भाई कसम धर्म की खाऊ
नाच देखने और करवाने का में हलफ उठाऊं। नहीं रंडी नचाऊँ नहीं रंडी नचाऊँ आज से लो मैं हलफ़ उठाऊँ।। १६ ।।
•
( वेश्यां निपेय ) रंडी बाज़ी में गर्क ज़माना हुआ, बड़े अपनों को दाग़
लगाना हुया ।। टेक ।। जिनके धन थे अपार, फंदे इसके पड़े यार, खोया ज़रमाल सार, हुई इज्जत बार, खाली दौलन का सारा खजाना हुया । रंडी बाजी मे० ॥ १॥ एक पाई का यार, नहीं मिलता उधार, कहे आदम बढकार मुंह से थके संसार, फल वेश्याकी प्रीती का पाना हुआ। रंडीवाजी में गर्क जमाना० ॥ २ ॥