Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 406
________________ ( ८२ ) ब्रह्मा काar at rat चावर इन्द्र सुपद लेवा, मृगछाला चाम जु आला फेरइ माला कर सेवा । तब इन्द्र पठाई देवी आई जाई पासइ नृत्य ठयो, तब इच्छा जागी भयो सरागी त्यागी पदते भृष्ट भयो, निज श्राव गमाई लोग हंसाई सो क्यों नहिं टारचो निज मरणं ॥ भज अरहन्तं ॥ १ ॥ कृष्ण मुरारी गऊ आचारी दे दे तारी हरखायो, गूजर की लड़की सिर मटकी झटकी पटकी दधि खायो । जोर जोरी वांह मरोरी गागर फोरी जल ढोरी, घर घर डोले मुख ना वोले औलें छिप माखन चोरै । भगत उचार राक्षस मारै सो कम हो तारन तरनं ॥ भजअर० ||२|| पी भांग धतूरा अमली पूरा सांप गुहेरा कंठ घरै, चढ़ि पशु सवारी साथ में नारी प्यारी प्यारी भजन करै, गौरा संग राचै गावै नाचै सांचे मन सेवा सारै, नर सिर माला धेरै विशाला शक्ति कपाला कर धारै । भोगी होय कहावे जोगी सो किस विध हो तारन तरनम् || भज अरहन्तं भज अरहन्तं ० || ३ || मच्छी यासं करइ ग्रासं छिन छिन नासं जगत कहै, ये वचनविलासा झूठो भाषा भगत बिलासा किम लहिये, करम कमाई कियो न पावई यों समझा बोध मती, साथ कहाव क्या फल पावै इह मन भावै ए करती, -

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