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वो ढक रहा कर्म से, जाहिर हो इल्तजा है। श्रादर्श जिंदगी हो, यह मेरी भावना है ॥ १ ॥ शक्ती हो मुझ में ऐसी, सब की मदद करूं मैं । सब की भलाई कारन, आगे कदम धरूं मैं ।। ताकत हो मुझ में ऐसी, जैसी थी भीम अर्जुन! पालू मैं शील ऐसा, ज्यों सेठ थे सुदर्शन ॥ मुहब्बत हो ऐसी पैदा, ज्यों राम अरु लक्ष्मण । स्थूल भद्र जैसा, राख में पवित्र मन ।। २ ॥ वाहू वली सा मुझ में, बल और वीरता हो । गज सुखमाल के मुताविक, हां ध्यान धीरता हो । अभय कुमर जैसी, बुद्धि मेरी हो निर्मल । गुरु हेमचन्द्र जैसा, आलमवन में शामिल ॥ सिद्ध सैन की तरह से, विद्या करूं मैं हांसिल । दुनियां के प्राणियों का, दुख मेंट दूं में कामिल ||३|| हरिभद्र कालिकाचार्य, विश्नुकुमार स्वामी । रक्षा करूं धर्म की, ऐसे ही बन के हामी ।। धना वो शालिभद्र, जैसी हो अस्तकामत । खंदक मुनि को अर्जुन, माली सी हो वो हिम्मत ॥ वस्तुपाल की तरह से, खर्चे धर्म में दौलत । विजय वो विजिया जैसा, कायम रख में जतसत ॥४॥ रिद्धी हो भरत जैसी, वैराज्ञ भी हो पूरा ।।