________________
(४४)
(हंस नामा) अजब तमाशा देखा हमने कहै गुरु सुन चेरा रे ।। टेक । एक वृक्ष पर एक हंस ने कीना रैन बसेरा रे । सुन्दर पक्षी देख उसे सब पतियों ने आ घेरा रे। अजव० ॥१॥ सब ने कहा हंस से यहां पर कोई दिन कीजे डेरा रे। ठहरा हंस वही उन सबसे उपजा मेम घनेरारे । अजव तमा० ॥२।। एक दिवस यह कहा हंस ने हम कल जांय सवेरा। यह सुन पक्षी दुख माना हम संग तजें न तेरा रे अजब तमाशा० ॥३॥ सुवह हंस ने लई उडेरी पक्षिन लिया उडेरा रे । कोई कोस दो कोस पै हारा, सवही ने दम गेरा रे । अजव० ॥४॥ सब पक्षी रह गये यहां पर उड़ गया हंस अकेला रे। या विधि जोति जाय अकेला ना संगी कोई मेरा रे अजब० ॥४॥
(उपदेशी) मुसाफिर क्यों पड़ा सोता भरोसा है न इक पलका, दमा दम वज रहा डंका तमाशा है चला चलका ।।टेक।। सुबह जो तख्त शाहो पर बड़ी सज धज से बैठे थे। दुपहरे वक्त मे उनका हुआ है वास जंगल का । मुसाफिर०