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( ४२ ) न रोक रोक हारे, विन तुम्हारे कम्मों से जब उसकी गति में आवेगा, तब वह खुश होकर सुख संपति शान्ति तुम्हें दे जावेगा । टिक टिक करती०॥४॥ क्षण का है आलस्य शत्रु यदि उसके मित्र कहाअोगे, तो क्षण दुख दे दे मारेगा तुम अधीर होजाओगे, जो क्षण बीत चुके हैं उस में तुमने क्या क्या काम किये, या मानुष्य कहलाने के शुभ साधन कितने जान लिये । टिक टिक कः ॥॥ शोक शोक तुमने किया कुछ तुम्हें न लज्जा आती है, उठो देर मत करो जवानो घड़ी वीतती जाती है। टिक टिक करती घड़ी रात दिन हमको यही सुनाती है, रामनरेश सुनो यह स्वर से क्षण क्षण के गुण गाती है।॥ ६ ॥
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( स्वारथ महिमा) समझ मन स्वारथका संसार ॥ टेक ॥ हरे वृक्ष पर पक्षी बैठा, गावै राग मल्हार । सखा वृक्ष, गयो उड़ पक्षी तजकर दम मे प्यार । समझ मन ॥१!! वैल वही मालिक घर आवत तावत वांधो द्वार, वृद्ध भयो तब नेह न कीनो दीनो तुरत विसार, समझ मन० ॥२॥ पुत्र कमाऊ सव घर चाहै पानी पीवें वार, भयो निखट्ट दुर दुर पर २ होवत वारम्बार | समझ मन० ।। ३।। ताल पाल पै डेरा