________________
(५५) ५६.
( भंग का ड्रामा )
पीने वाला -- चलो भंगिया पियें, चलो भंगिया पियें, इस
यिन मूरख योंही जियें. ॥ कून्डी सोटा बजे दमादम, छने छनान भंग । मजा जिंदगी का जब यारो, हों चुल्ल में दंग | चलो भंगिया पियें चलो भंगिया पियें ॥१॥ विरोधी - मत भंगिया पियो मत भंगिया पियो, इस से अच्छे.योंही जियो' ॥ खुश्की लावे अकल नशावे, वेसुध करके डारे । होश रहें नहीं दीन दुनी का, । बिना मौत ही मारे || मत भंगिया प्रियो मत भंगिया । पायो इस विना० ॥ २ ॥
1
1
पीने वाला तू क्या जाने स्वाद भंग का, है यह रस. अनमोल | मगन करे आनंद बढ़ावे, दे घट के पट. खोल || चलो भंगिया पियें ० || ३ ||
विरोधी - सिर घूमे और नथने सूखें, नींद घनेरी आवे,. कल की बात रही कल ऊपर, भूल, अभी की जावे. । मत भंगिया पियो, मतं भंगिया पियो० ॥४॥
ĭ
1
1
पीने वाला - भंग नही यह शिव की बूटी, अजर अमर है करती । जनम जनम के पाप नशाकर, सब रोगों को. हरती || चलो भंगिया पियें चलो, भंगिया पियें ॥५॥