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( २४ ) सभी दुख द्वंद निवेरी । हो दीन० ॥ १८ ॥ जब सेठ के नंदन को डसा नाग जो कारा, उस वक्त तुम्हें पीर में धरि धीर पुकारा, तत्काल ही उस बालक का विष भर उतारा, यह जाग उठा सो के मानो सेज सकारा। हो दीन० ॥१६॥ मुनि मान तुंग को दई जब भूपने पीड़ा, ताले में किया बंद भरी लोह जंजीरा, मुनिईश ने आदीश की स्तुति की है गम्भीरा, चक्रेश्वरी तब आन के झट दूर की पीड़ा। हो दीन० ॥२०॥ शिव कोट ने हठ था किया समन्त भद्रसों, शिवपिंड की वंदन करो शंको अभद्र सों, उस वक्त स्वयम्भू रचा गुरु भाव भद्र सों, जिन चंद्र की प्रतिमा तहां प्रगटी अनंद सो । हो दीन० ॥२१ ॥ सवे ने तुम्हें आन के फल आम चढाया, मेंडक ले चला फूल भरा भक्ति का भाया, तुम दोनों को अभिराम स्वर्ग धाम वसाया, हम आप से दातार को लखि आज ही पाया। हो दीन ५० ॥२२॥ कपि स्वान सिंह नवल अज वैल विचारे, तिर्यच जिन्हे रंच न था वोध चितारे, इत्यादि को सुर धाम दे शिव धाम मे धारे, हम आप से दातार को प्रभु आज निहारे । हो दीन वं० ॥२३॥ तुम ही अनंत जन्तु को भय भीर निवारा, वेदो पुरान में गुरु गनधर ने उचोरा, हम आपकी शरणागत में आके पुकारा, तुम हो प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष इच्छित कारा । हो दीन वं० ॥२४॥