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( २८ ) भोर भये पूजा की वेला सो टल जाता है। सांझ समय सामायक करना याद न आता है । प्रभू हरो मेरा प्रमाद ॥१॥ गुरु भक्ति अरु शास्त्र स्वाध्याय वन नहीं
आता है तप संजम अरु दान का देना मन नहीं भाताहै। प्रभू हरो० ॥२॥ यह षट कर्म श्रावक जिन शासन दरसाना है । एक नहीं पूरा होता दिन वीता जाता है। प्रभू हरो मेरा परमाद० ॥३॥ पाता है वृप अर्थ काम शिव जो शरणाता है। दो शक्ती दीना नाथ सदा न्यामत गुन गाता है । प्रभू हरो० ॥४॥
( लावनी देश तुम पर वार ) जाऊं जाऊं जाऊं जी आदीश्वर तुम पर वारना जी टेक ॥ प्रभु तुम गर्भ विबै जब आये पट नवमास रतन वरपाये सची सची प्रतिछाये मंगलचारना जी । जाऊं जाऊं० ॥१॥ न्हवन हेत ले इन्द्र गये, आकर पांडुकशिला मेर गिर जाकर, सहस अठोनर क्ला तुम सिर ढार ना जी । जाऊं जाऊ० ॥२॥ रतन जड़ित भूपण पहिरा कर, धारे तीन छन माथे पर, लाये पप्प सो माल बना कर, तुम गल डारना जी । जाऊं जाऊं० ॥ ३॥ इन्द्र नृत्य को तुमरे आये, अष्ट द्रव्य पूजन को लाये, सारे