Book Title: Prachin Jainpad Shatak
Author(s): Jinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 362
________________ ( ३६ ) निरलोभी करम भरम हारी । जय जय० ॥ २ ॥ धागे ध्यान करत अरविंद मातंगज लखि समताधारी प्रभु लखि समताधारी, तीर्थफर पद पारस पाय भयो भवपारी । जय जय० ॥३॥ विहिताश्रय मुनि मारन आयो मृगपति बल भारी, प्रभु मृगपति वल धारी, भयो वीर तीर्थकर सुनि शिक्षा थारी ! जय जय० ॥४॥ स्वामी दोप कुशील दियो सीता को, दुर्जन अविचारी प्रभु दुर्जन अविचारी, कूद पड़ी अग्नी में लेय शरण थारी । जय जय० ॥५॥ खिल गये कमल अगन में स्वामी चढ़गये जल भारी, प्रभु चढ़गये जल भारी, अच्युतेन्द्र तुम कीनो फिर न होय नारी । जय जय० ॥६॥ बलि ने यज्ञ रचाय दुखी किये मुनि जन ब्रह्मचारी प्रभु मुनि जन ब्रह्मचारी, विष्णु कुमार मुनीश्वर कियो तव उपगारी । जय जय० ॥ ७॥ सर्प किये फूलन के गजरे जिन सेवा धारी, प्रभु जिन सेवा धारी, विदित कथा सतियन की जानत नर नारी । जय जय० ॥८॥ (आरती तीसरी) सांझ समय जिन वंदो भवि तुम सांझ समय जिन बंदो॥टेक ॥ लेकर दोपक आगे बालो, कटत पाप के . फंदो। भवि तुम० ॥१॥ प्रथम तीर्थकर आदि जिनेश्वर

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