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( २६ )
( मल्हार) रुम झुम रुम झुम वरपै बदरवा, मुनि जन ठाढे तर __ वर तलवा ॥ टेक ॥ काली घटा ते सवही डरावे वे न डिगे ___ मानो काठपुतलवा । रुम झुम० ॥१॥ वाहर को निकसे
ऐसे में ठाड़े रहे गिरवर गिरवा । रुम.झम० ॥२॥ झंझा वायु वहै अति सियरी वेन हिले जिन बल के धरौवा रुम झुम० ॥३॥ देख सुनें जो आप सुनावे ताकी तो करहू
नौकरवा । रुम झुम० ॥४॥ सुफल होय शिर पांव परस __ वे बुध जनके सब काज सरोवा । रुमझुम ॥५॥
(गजल) मंगल नायक भक्ति सहायक स्वामी करुना धारी, प्रभु मंगल मूर्ति सुनामी चहुं घातिया चर अकामी, शीश नमाऊं तव गुन गाऊं तुम पर जाऊं वारी ।। टेक॥(शेर) लगा के ध्यान आतम चिदानंद रूप दिखलाया, जराके कर्म रिपु आटों अमर पद आपने पाया, विना कुछ गर्जे के तुमने हिनाहित ज्ञान बतलाया, गया जो गर्ज ले तुम पै वह खुद बेगर्ज हो पाया। प्रभु राग द्वेष सब त्यागे घट ज्ञान अनन्ता जागे, विधन विनाशक ज्ञान प्रकाशक भवि