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( २३ ) उस वक्त तुम्हें सेठने निज ध्यान में ध्याया, सली से उतार उसको सिंघासन पै बिठाया। हो दीन० ॥१२॥ जब सेठ सुधन्ना जी को वापी में गिराया, ऊपर से दुष्ट था उसे वह मारने आया उस वक्त तुम्हें सेठ ने दिल अपने में ध्याया, तत्काल ही जंजाल से तब उनको बचाया। हो दीन० ॥१३॥ एक सेठ के घर में किया दारिद्र ने डेरा, भोजन का ठिकाना था नहीं सांझ सवेरा, उसवक्त तुम्हें सेठ ने जब ध्यानमें घेरा, घर उसके में झट करदिया लक्ष्मी का वसेरा । हो दीन बंध० ॥१४॥ वलिवाद में मुनि राज सो जब पार न पाया, तब रात को तलवार ले सठ मारने आया, मुनि राज ने निज ध्यान में मन लीन लगाया उस वक्त हो प्रत्यक्ष जहां जक्ष बचाया । हो दीन बंध ।। १५॥ जब राम ने हनुमंत को गढ लंक पठाया, सीता की खबर लेन को फिलफौर सिधाया, मग बीच दो मुनि राज की लखि आग में काया, झठ वार मसल धार सों उपसग वुझाया । हो दीन वं० ॥१६॥ जिन नाथ ही को माथ निवांता था उदारा, घेरे में पड़ा था सो कुलिश करन विचारा, रघुवीर ने सब पीर तहां तुर्त निकारा। हो दीन ५० ॥१७॥ रनपाल कुंवर के पड़ी थी पांव में वेड़ी उस वक्त तुम्हें ध्यान में ध्याया था सवेरी, तत्काल ही सुकुमार की सब झड़ पड़ी बेड़ी, तुम राज कुंवर की