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( २२ ) शील वती चंदना सती, जिसके नजीक लगती थी जाहिर रती रती, बेड़ी में पड़ी थी तुम्हें जब ध्यायती हुती, तब वीर धीर ने हरी दुख द्वंद की गती। हो दीन० ॥६॥ श्री पाल को सागर विर्षे जब सेठ गिराया, उसकी रमना से रमने को आया वो बेहया, उस वक्त के संकट में सतीतुम को जो व्याया, दुरव टुंद फंद मेटक आनंद बढाया । हो दीन० ॥७॥ हरि खेन की माता जहां सौत सताया, रथ जैन का तेरा चले पीछे यो बताया, उसवक्त के अनशन में ससी तुमको जो ध्याया, चक्रेश हो सुत उसके ने रथ जैन चलाया । हो दीन० ॥॥ जव अंजना सती को हुश्री गर्भ उजारा, तव सासने कलंक लगा घर से निकारा, वन वर्ग के उपसर्ग में सती तुमको चितारा प्रभु भक्त व्यक्त जान के भय देव निवारा । हो दीन० ।।१॥ सोमा से कहा जो त सती शील विशाला, तो कुम्भ मेंसे काह भला नाग जो काला, उस वक्त तुम्हें ध्याय के सती हाथ जो डाला, तत्काल ही बह नाग हुआ फूल की माला । हो दीन० ॥१०॥ जब राज रोग था हुआ श्रीपाल राज को, मैना सती. तब आपको पूजा इलाज को, तत्काल ही सुंदर किया श्रीपाल राज को, वह राज भोग भोग गया मुक्त राज को । हो दीन० ॥११॥ जब सेठ सुदर्शन को मृपा दोष लगाया, राणी के कहें भूप ने सूली पै चढाया,