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( तर्ज - चाहे बोलो या न
बोलो )
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चाहे तारो या न तारो चरणों में
पड़ा हूं ॥ टेक ॥ तेरे दरश को मैं आया, मन में तुही समाया, अति दीन हो खड़ा हूं । चाहो त्यारो० ॥ १ ॥ सब जगत में फिर आया, शरना कही न पाया, तेरी शरन आ गिरा हूं । चाहे त्यारो० || २ || निज दास जान लीजे, शिव मग वताय दीजे, वन २ भटक फिरा हूं । चाहो त्यारो० ॥३॥
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( गज़ल )
य
प्रभू जी, अब तो हमारी इन दिनों । हैगी वेकरारी इन दिनों ॥ टेक ॥
लीजिये सुधि गरदिशे दुनियां से आरि घेरे पड़े हैं कर दिया खाना खराब, बचने की सूरत नही इन से हमारी इन दिनों । लीजि० ॥ १ ॥ गुस्सागर हा बुराज लालच से नहीं मुझ को पनाह, हो गई वन बन के तबियत की खराबी इन दिनों । लीजि० || २ || क्या करूं किससे कहूं, कहां बचके इन से जाऊं मैं, कोल्हू के बैल जैसी गति हमारी इन दिनों । लोजि || ३ || तुम को बिन जाने दयानिधि चार गति भ्रमता
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