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रहा,अब तो कदमों की शरण लीन्ही तुम्हारी इन दिनों। लीजि० ॥ ४ ॥ तुम गरीय निवाज हो, और मैं गरीबों का गरीव, जग उद्धारक की विरद जाहर है थारी इन दिनों । लीजि० ॥ ५ ॥ सख्त आफत में फंसा हूँ अय मेरे मुश्किल कुशां, कर दो मुश्किल सख्त को आसान मेरी इन दिनों। लीजि० ॥६॥ अपनी महफिल प्रालीका दीजे ज़रा रस्ता बता, मथुरा की ख्वाहिश वरारी होगी पूरी इन दिनों । लीजि० ॥ ७ ॥
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( कव्वाली) आज जिनराज दर्शन से भयो आनद भारी है ।।टेक॥ लहें ज्यों मोर घन गर्जे, सुनिधि पाये भिखारी है, तथा नो योद की वातें, नहीं जाती उचारी है । आज० ॥१॥ जगद के देव सब देखे क्रोध भय लोभ भारी है, तुम्ही. दोषावरन विन हो कहा उपमा तिहारी है । आज़० ॥२॥ तुम्हारे दर्श विन स्वामी. भई चहू गति में ख्वोरी है, तुम्ही पदकंज नमते ही मोहनो धूल झारी है । आज० ॥३।। तुम्हारी भक्ति से भविजन, भये भवसिंधु पारी है, भक्ति मोहि दीजिये अविचल सदा याचक विहारी है । आज० ॥ ४ ॥