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१८] महाचंद जैन भजनावली। सिंह बघेरी और सर्पणी इनहीकी संगत दुख गिन तेरे। इनकी संगत दुख हैं थोड़े परत्रिय संग लगे घनमेरे ॥ ३ ॥ भबि० ॥ परत्रिय संगत रावण कीनी सीता हरलायो बन मेंरे। तीन खंडको राज गमायो अपजस लेगयो नर्कन मेंरे ॥ भवि०॥४॥ ज्यों ज्यों परत्रिया संगति करि हैं त्यो त्यों काम बढ़ा अंगमेंरे। बुधमहाचन्द्र जोनिये दूषण परत्रिय संग तजो छिनमेंरे ॥भ०५
(२५) रेखता। देखि जिनरूपद्व नयना हर्ष मनमें न माया हो ॥ टैर ॥ इन्द्रहु सहस्र नेत्रन रच तुम्हें जिन देखन ध्यायाहो ॥ देखि०॥ १॥ धन्यहो श्राजका यह दिन तुम्हारा दर्श पाया हो । रंक घर ज्यों सुऋद्धि होते त्यों हमैं हर्ष आया हो । देखि० ॥ २॥ सफल पद थान यह बातें सफल नयनों दर्श पाते। सफल रसना जुः पदगाते सफल कर पद पशवातें ॥ देखि०॥३॥ और कछु नांहि मोबांच्या सेवा तुम चरण पावांहो ।