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[७७ ] तुमरी कर मुद्राधारी-जीत्यो सिंहोदरसैं राम गरद झारी ॥९॥ स्वामी तिरगये नृप श्रीपाल भुजन तैं महा सिंधुखारी-कुष्ट व्याधिगई छिन मैं तुमही निर्वारी ॥ १०॥ महामंडलेश्वर पददे तुम कियो अगत पारी-वादिराय मुनिवर की हरीज्याधि सारी ॥१॥ मानतुंग मुनिवर के तोड़े राज बंध भारी-चढ़े सुदर्शन शूलीवरी मुफतिनारी ॥१२॥ इत्यादिक भगवंत अनंती महिमा तुमधारीतीनलोक त्रिभुवन में विदित कथा थारी ॥१३॥ शेष सुरेश नरेश मुनीश्वर जाधै बलिहारी-पावै अखै अचलपद टरै विपतसारी ॥१४॥ कहत नैन सुख आरति तुमरी करत हरन हारी-तारे जीव अनंते अबकै बार हमारी ।।१५।।
दूर करो सब
१५८-आरती। जय जय जिनवानी नमो नमो-त्रिभवन जनमानी नमो नमो गण धरने बखानी नमो नमो जय जय ॥ टेक ।। वीत राग हिम गिरतें उछरी-गणधर गुरुवों के घर में पसरी-मोह महा चल दमो दमो जय ॥१॥ जग जड़ता तप दूर करो सव-समतारस भरपूर करो अब-ज्ञान विषैलेरमोरमो ॥ २ ॥ सप्ततत्व षट दरव पदारथखो दिये तो विन मैं ये अकारथ, अब मेरे उर जमो जमो ॥३॥ जब लग शिव फल होय न प्रापत, चहुँ गति भ्रमण न होय समापत तवलों यह कृषि थमो थमो ॥४॥ शंकर सिंह नवल कपितारे, चील भील अरु फील उभारे, त्यों मेरे अघ क्षमो क्षमो ॥५॥ जै जग ज्योति सरस्वती प्यारी, हग सुख आरति परै तुम्हारी, अरतिहगे सुख समो समो॥६॥
खोहिन विषेलेरमो