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३६] महाचंद जैन भजनावली। रिपू हम कहा करि हैं॥रांग ॥ १॥ नहिं अष्टा दश दोष जिनमें छियालीस गुण आकर हैं। सप्त तत्व उपदेशक जगमें सोही हमारे ठाकुरहैं ॥ राग ॥ २॥ चाकरिमें कछु फल नहिं दीसत तोनर जगमें थाकि रहैं । हमरे चाकरिमें है यह फल और जगतके ठाकर हैं ॥राग ॥३॥ जांकी चाकरि बिन नहि कछु सुख तातें हम सेवा करिहैं ॥ जाकै करणे तैं हमरे नहिं खोटे कर्म विपाक रहैं ॥ राग ॥ ४ ॥ नरकादिक गति नाशि मुक्ति पद लहैं जु ताहि कृपाधरहैं ॥ चंद्र समान जगतमें पंडित महाचन्द्र जिनस्तुति करिहैं ॥राग०
(४७) याही अरज हो मोरी श्रीजिन सांई ॥ टेर अबलौं हम तुम भेदन जान्यों मिथ्या भर्म भुला ई ॥ याही ॥१॥ अन्य देवकी सेवा करिके लख चौरासी भरमाई ॥ याही० ॥ २ ॥ जाके सेवन” भव भव दुख सोही हमने सुहाई ॥ याही० ॥ ३॥ धन्य घड़ी पल आज दिवसकी तु