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[३२] चरम शगरी तुम हो माहिब, मैं चेग तुमरा नार । गखो नाथ चरण में अपने, तुम भगवत में भक्त तुम्हार ॥३॥ तारे बहुत भन्यजन तुमन, हमस अधम रहे मझधार । अब कै नाथ हमें निस्तारो, तुमग जन्म Fमारी बार ॥ ४ ॥
नाचें इन्द्र जिनेद्र निहारे. लेत वलय्यां भुजा पलार । लख २मुख एससुख न समाव, अविलाकै कर नयन हज़ार ॥
१३०-रागनी देशवा सोरठा ।
छाये पुन्य जगत जन शुभ की घड़ी, शुभकी घड़ी हे शुभ की घड़ी-छाये ॥ टेक ॥ जगो सुहाग भाग जग जनका-परजा सकल निहाल करी। जन्में तीर्थकर या भंपर-नर्कादिक में चैन परी ॥ ॥ चिरजीवो यह बालक जग में-जापै शिव त्रिय माँग भरी । जुग जुग जीवो तुम मात पित नित सूवस बसो यह अवधिपुरी ॥ २॥ घर घर पुष्प सुधारस बरसैं- लग रही पंचाश्चर्य झड़ी नयनानंद सुरेंद्र भगति लख-भवि जन सम्यक दृष्टि धरी ॥३॥
(१३)
सुनरे अज्ञान, टुकटे के कान अपनी समान, लख सबकी जान. दशप्राण फिली प्राणी के ना संहारे । टेक ।। मत काट पीट. सपरस कं ढीठ, मतना घसीट, मतना उचींट, मत रस अनिष्ट, सींचे भींचे जारै मारै ॥ १॥ तु तो इष्ट मिष्ट खावे रस विशष्ट, योहि दिव्य दिष्ट लख हाल शिष्ट, होकै बलिए, रसना को न विदार ॥२॥ मत नाक तोड़, मत आंख फोड़,