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तिहुँ काल अचल सुख पावो-तिहुँ लोक संत कहावो-१४ दृगसुख, सब पाप गलैया-नहिं काल अनन्त रुलैया-१५
, १३८-ठुमरी जंगला पूर्वी दादरा । ___कुछ ले चल भवोदधिपार-मंज़िल दूर पड़ी ॥ टेक ॥ थोड़ा सा दिन है अटक है भयानक-फर्मों के विकट पहाड़-१ दिन तो छिपैगा झुकैगी अंधेरी-दुख देगी लुटेरन की डार-२ लूटेंगे धन तेरा चूटेंगे तन-तुझे देंगे नरक में डार-३ आश्व रुकाद निराश्रव चुकादे-कोई रोके ना इस उस पार-४ मरजी पड़े तो चुकादे भली विध-जैसा सुजन व्यवहार-५ मंदिर बनादे प्रभावनाम देदै-साधू को देदे आहार-६ कंवली प्रणीत जिन शासन लिखायदे-बिद्याका करदे उद्धार-७ दुःखित को देदे खिलादे मुखित को-तीरथ पै करदे उपकार-८ तजदे कुबातों को सातों में देदे-सिर से पटक दे सारा भार-९ प्रन्थ कोविसारोपधारोशिवपंथको-नहिं त्यागीकोटोकैसरकार-१० भाषै हगानंद सदानंद पावो-आवो न जावो संसार-११
१३९-रागनी सारंग । वश कीजे-प्यारे वश कीजे-अरेहारे गुमानी मन वश कीजे । कै साधू उपधि तज सारी-जगत में जस लीजे ॥ टेक ॥ पाप करत गयो काल अनंता-अब होजा ब्रह्मचारी-कमर दृढ़ कसलोजे ॥१॥ उदय बिपाक सहा सव सुख दुख-जस अपजस सुनगारी-समाधी में धंल दीजे ॥२॥ समता सुधा सिंधु में