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भये हैं जतीरा॥१॥ भरि संतोष कुड रंग सोह, टेरपंच समिती री। रत्नत्रय व्रतधारि कोतुहल, आतमसू करती री, स्वांग जगलू डरती री ॥ २॥ रोके है आप्रव जन मतवारे, संवर डफ धरती री। तीन गुप्ति की ताल बजावन-भवसागर तरती री॥ भानको मद हरती री ॥३॥ कर्म निर्जरा बजत मजीग, शिव एथ गति भरती री।ग सुख धरि सन्यास छिनक में पाई है देव गतीरी । स्वर्ग अच्युत में सतीरी ॥४॥
८५-राग काफी।
बल खेलिये होरी नेमि वैरागी भयोरी ॥टेक ॥ केवल ज्ञान क्षीर सागर से, भाजन मन भग्लोरी। नामें पंच समिति की केशर घस घम रंग करोरी-ध्यान के ख्याल लगो री ॥१॥ लमक्ति की पिचकारी ले ले, गुप्त सखी संगलोरी। भव्य भाव शुभ हेरि हेरि फे, निज निज बसन रंगारी-धरम सबही को लगोरी ॥२॥ सप्त तत्व के लिये कुमकुमे, नव पदार्थ भर झोरी। भिन्न भिन्न भविजन पर फेंको, तृष्णामान हनोरी-वेग वनवास बसो रो॥ ३॥ मोह दंड होरी का फूको, जाते दुख न भरोरी। पंचमगति की राइ यही है, आरत चित विसरोरी-नैनसुख जोग धरोरी॥४॥
८६-गग कान्हडा तथा काफी ।
अरी एरी में तो आज वसंत मनायो, पिया ज्ञान कान्हयर आयो सखी री मैं तो आज वसंत मनायो॥ टेक | कुवज्ञा कुमति दसोटादीनो, सुमति सुहाग वढायो। शाल चुनरियाप्रमुख