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हम भी सुस्त्र पावेंगे ॥२॥ मैथुन व्यलन बुरा है प्राणी, जो इन में फंस जावेंगे। उन जीवों के, वीज अरु वंश नष्ट हो जायेगे । फिर उनके संतान न होगी, होगी तो मर जायेंगे। जो न मरेगे तो उनके तन से होगन नावेंगे॥ नग्कों में उनकं लोहे के, यंभों से लटकावेगे। लोह की पुतली, गरम कर छाती से चिपकावेंगे॥ हाहाकार करेगा जब वह, मुख में बांस चलावेगे। दया जीव की, करेंगे तो हम भी सुख पावेगे ॥ ३ ॥ जिनके नहीं परिग्रह संख्या, तृष्णावन्त कहावेंगे। लोभ के कारण, झंठ और चोरी में मन लावेगे। गुरुकं मार देवकं वेच, समा से धर्म उठावेगे। बाल बृद्ध के, कण्ठ में फांसी दुष्ट लगावेंगे॥ राजा पकड़ धरैशूली पर, फेर नरक में जावेगे। बचन अगोचर, नर्क के बहुत काल दुख पावेंगे ॥ कह नैनसुख दास दया से, सब सङ्कट कट जावेगे। या जीव की, करेंगे तो हम भी सुख पावगे ॥४॥
१०८-राग विहाग की ठुमरी } देखो भूल हमारी, हम सङ्कट पाये ॥ टेक ॥ सिद्ध समान स्वरूप हमारा, डोलू जेम भिखारी॥ १ ॥ पर परणति अपनी अपनाई, पॉट परिग्रह धारी ॥२॥ द्रव्य कर्म बस भाव कर्म कर, निजगल फांसी डारी ॥३॥ नो करमेन ते मलिन कियो चित, बांधे बंधन भारी ॥४॥ वोये पेड़ बंबूल जिन्होंने, लावै क्यों सहकारी ॥ ५ ॥ करम कमाये आगे आवे, भाग सब संसारो॥६॥ नैन सुक्ख अब समता धारो, सतगुरु लीख उचारी ॥७॥