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[४९ ] गिनी हम अपनी, मद जोवन से भगे। हे कुदेवों को संग कगे ॥१॥ दरब करम की ममता नल में, आपही आप जरो-हे कुलिंगो को स्वांग भरी ॥२॥ भाव करम नो कर्म जुदे हैं, मैं चैतन्य खरो-हे कुवानी के पंथ परो॥ ३ ॥ ज्यों तिल तेल मैल सुवरण में, दधि में घीव भरो-हे अनादि को जोग जुगे॥४॥ मुकति भये बड़भाग नैनसुख, तेलखि तेल परो-हे जड़ाजड़ भिन्न करो ॥५॥
१०७-दया की महिमा-मरहटी लंगड़ी रङ्गत जिसके
४ चौक हैं।
बंधे हैं अपनी भूल से भाई, बंधे बंधे मरजावेंगे, दया जीव की करेंगे तो हम भी सुख पावेंगे॥ टेक ॥ दया से परजा कहेगी राजा, दया से संत कहाधेंगे। दया के कारण, सेठ अरु साहूकार यनाबैंगे ॥ जे दुखिया की मदद करेंगे, इस जग में जल पावेंगे। विपत काल में, वही फिर मदद हमें पहुँचायेंगे॥ धन जोबन के मद में हम तुम, जिसका जीव दुखावैगे। पुण्य गिरैगा, तो वे फिर छाती पर चढ़ जावेंगे । छेदँ अरु भेदेंगे तनफं, काढ़ कलेजा खावेंगे। दया जीव की. करेंगे तो हम भी सुख पायेंगे ॥१॥ झूठ वचन से मान घटेगा, अरु जिसके लिंग जावेंगे। सत्य वचन भी, कहेंगे तो सब झूठ बतायेंगे ॥ बसु राजा की तरह झंठ से नरक कुण्ड में जावेंगे। सत्यघोष की, तरह फिर राजदण्ड भी पायेंगे ॥ चोरी के कारण से प्राणी, कुल कलङ्क लग जावेंगे। रावण की ज्यों, वंश अरु वेलिनाश होजावेंगे ॥ फिर नरकों में उनके मुख को फंचा बाल जलावेगे। दया जीव की, करेंगे तो