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[३९], दीजो, भाई दीजो अकर के जी ॥२॥ जिन जिन तुमको पूजे. ध्याये, भजि गये कर्म सुकरि फैं जी.] ग सुख के भेव बंधन, तोड़ो, सरि है नाहि मुकरि के जी । ॥३॥
८२-रागधनाश्री। हेमकू पदम प्रभु शरण तिहारी जी ॥ टेक ॥ पदमा जिनेश्वर पदमा दायक, धायक ही भव के दुख भारी जी ॥ १॥ तुम सों देव न जग में दुजो, अरु हमसे दुखिया संसारी जी ॥२॥ अपने भाव वकस मोहि दीजे, यह तुमसे अरदास हमारी जी ॥३॥ नैनसुक्ख प्रभु तुमरी संघा, भवद्धि पार उतारनहारी जी ॥४॥
८३-गगनी ट्यौडी। हमकू आप करो अपनी सम, पारस लखि अरदास करी है ॥ टेक ॥ नाम प्रभाव कुधात कनकहाँ. महिमा अंगम अनंत भरी है। सकल सृष्टि उत्कृष्ट संपठा. तुम पद पंकज आर्य परी है ॥ १ ॥ जे तुम पद पद्माकर संधै, तिनत भवं आताप डरी है। जनम मरण दुख शोक विनाशन, ऐसी तुम पै परंम जरी है ॥२॥ कहत नैनसुख हमरी नय्या, इस भव भंवर मँझार पड़ी है।
८४-होली अध्यात्म राजमती की-रागनीकाफ़ी । __ होरी खेलते राजमतीरी। हे सतीरी-होरी खेलत राजमतीरी ॥ टेकं ॥ संजमरूप वसंत धरी लिर, तजि भव भोग सतोरी। श्रीगिरनारि विजय वनं युजन कर्मन संग लॅरीरी-पंत जाके