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७७-राग ट्यौडी। आदि पुरुष तेरी शरणगहीअब, टूटी सीनाव समुद्रबिचबेड़ाटेक॥ नाभि पिता मरु देवी के नंदन, इस अवसर कोई नहीं मेरा। अगम उदधिसैं पार लगावो, आन पहुंचा रहां काल लुटेरा ॥१॥ आतम गुणकी खेप लुटी सब, लूट लियो अनुभव धन मेरा। दीनबन्धु इस करम भंवर की, कठिन बिपति में पड़ा थारा चेरा॥२॥ क्यातो नय्या उलटी ही फेरो, क्या अब पार करो यह वेड़ा। नैनानंद की अरज़ यही है, नातर विरद लजावै तेरो ॥३॥
७८ - राग जंगलेकी लावनी वा ठुमरी (बधाई) ।
नाभि धरले चलरी आली, जहां जन्मे दिजिनंद किया वैमान विजय खाली ॥ टेक ॥ ऐरावत गज साज सुरग में, सुर सेना चाली । फूलन के गजरा गंदलाये, वागन के माली ॥१॥ नंद बृद्ध जय जयधुनि टेरै, मोर मुकट वाली । झनन झनन हग दृगन करत सुर दे देकर ताली ॥२॥गंधोदक की वृष्टि रतनकी धारा सुरढाली । शीतल मंद सुगंध पवन अब चारों दिश चाली ॥ ३ ॥ जल चंदन अक्षत सुरलाये, फूलन की डाली। चरु दीपक शुभ धूप फलादिक, भर भर कर थाली ॥४॥ सुफल भयो अब जन्म हमारो, चहुँ गति दुख टाली । नैनानंद भयो भांबजनफँ, लखि यह खुशहाली ॥५॥
७६-ठुमरी जंगला झंझोटीका जिला । नाभि कुघरका देख दरश सब दूर भयो दिलका खटका ॥ टेक ॥ इंद्र बधू जिन मंगल गावें, भेष किये नागर नट का। मेरु शिखर पर प्रथम इंद्रका, जिन उत्सवकं मन भटका ॥१॥