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महाचंद जैन भजनावलो ।
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उदय श्रावक कुल पायो जैन धर्म चितलानी । चौरासीके दुक्ख हरन बुध महाचन्द्र कहै बानी ॥ सदादुख पावेरे ॥ ८ ॥
(४५) प्रभाती ।
बिपुलाचल शिखर आजि और रूप राजै ॥ टेर || आये जिन वर्द्धमान समवसरण युत महान सुरनर तियंच नि निजस्थान विराजे || बिपुला ॥ १ ॥ षट ऋतु फल फूल सबै फलिये इक काल अदाडिम अरु दाख फ ात्र पुंग ताजे ॥ विपुला० ॥ २॥ सिंह गौवत्स हेत मृषक मार्जार पेत न्योला अरु नाग केत बैर रहित छाजै ॥ विपुला० ॥ ३ ॥ सुणियो अतिशय प्रवीन श्रेणिक नृप धर्मं लीन करमे वसु द्रव्य कीन, पूजन के काजै ॥ बिपुला० ॥ ४ ॥ कीनूं बहु पुन्य जिने तप करिकैं रैन दिन पंडित महाचन्द्र तिनैं देखे महाराजै ॥ बिपुला० ॥ ५ ॥
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राग द्वेष जाके नहिं मनमैं हम ऐसेक चाकरहैं || टेर ॥ जो हम ऐसेके चाकरतो कम