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[१८] सखि निरखि निरखि पग गमनकियो, समताधरिधर्मविपाकमहो चलो परम पुरुष के बंदन कू, अब केवल ज्ञान कला जागी ॥२॥ हथनापुर तीरथ प्रगट करो, जहां गर्म जन्म तप ज्ञान बगे। नयनानंद पायन आनि परो. वाही के चरणस लो लागी
३६- रागनी सोरठ (श्रीमल्लिनाथ) थे देखो आली गे मलिनाथ कुमार ॥ टेक ॥ माता जाकी प्रभावती देवी है जी. तात कुभ भूपाल, त्यागो सब परिवार ॥१॥ तजि मिथुलापुर जोग लिया है, रीवंश इक्ष्वाकु विसार कीनो सुवन विहार ॥२॥ भोगो राज न व्याह न कीलो रो, वाल ब्रह्म तपधार, कोनो धैर्य अपार ॥३॥ कहत नैनसुख जोग जुगति से, री पहुँचे मुक्ति मझार, गावो मंगलवार ॥४॥
३७-गग विहाग (श्रीमुनिसुव्रतनाथ) अब सुधि लेहु हमारी मुनि सुव्रत स्वामी ॥ टेक ॥ तुमलो देव न जग में दूजो. मैं दुस्त्रिया संसारी ॥१॥ तुमहीं वैद्य धनत्तरि कहियो, तुमही मूल पंसारी ॥२॥ घट घट की सव तुमही जानो, कहा दिखाऊ नारी ॥ ३ ॥ करम भरम ममरोग तलाबो, इल मोहि दुख दिये भारी || तुम जग जीव अनंत उवारे, अक्कं बार हमारी ॥५॥ हग सुख तारण तरण निरनि के, आयो शरण तिहारी ॥६॥
३८ रागनी जय जयवंती [श्रीनमिनाथ] कर बड़ भागन आलस त्यागन, नमि जिन पति तेरे पुन भयो है ॥ टेक ॥ तू सुख नींद मगन मइ सोबत, हम प्रभु