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[३१] दत नैनलत तार तार प्रभु. तुम हो सतगुरु दाना। नातर विग्द ल्जाव तेगे, देत सलल जग ताना ॥ ४॥
६४ गगदेश ठाड़े जी गुसइय्यां तेरे दरबार में, स्वामी म्हागरे । टंक ।। करम हमारे बध गये भारे जी, हो इन दोजे निकार ॥१॥ विधनहरन तुम सबही के दाताजी, हो अतिशय अगमापार ॥२॥ निरखत रूप पुरन्दर हारे जी, हो जस गावत गणधार ॥ ३ ॥ मनमयूर नैनानन्द मानत जी, सुन सुन बचन तिहार ॥ ४ ॥
६५ - रागनीजंगला। भगवान दर्शन दीजे, जी महाराज दर्शन दीजे, अजि मैं तो दर्शनकारण आया, जी महाराज दर्शन दीजै ॥टेक॥ कोई ती मागे प्रभु स्वर्ग सम्पदा, मैं था. पूजन आया ।। १ ।। इन्द्र न्हुलावे तुमैं क्षीरोदधि से, मैं प्राशुक जल लाया ॥२॥ इन्द्र चड़ावै प्रभु रतन अमोलक, मैं तंदुल चुग लाया ॥ ३ ॥ इन्द्र करें प्रभु ताडव नाटक, में जल गावन आया ॥४॥ कहै नैनसुख दर्शन करके, अब नर भी फलाया ॥ ५ ॥
६६-राग कालंगड़ा । जो तुम प्रभु हो दीनदयाल, तो तुम निरखो मेग हाल ॥ टेक ॥ नरक निगाद भरे दुःख भारी, हाल निकस भ्रमोजगजाल । जल थल पावक पवन तरोवर, धर घर जन्म मरो बेहोल ॥१॥ क्रम पिपीलिका भ्रमर भये हम, विकलत्रय की सीखी चाल । फिर हम भये असैनी सैनी, चढ़ि नव मीच गिरे ततकाल ||२||