________________
तुम सेवा का यह फल चाहूं क्रोध कपाय टरो। माया मान लोभ की परणति, ये जग जाल जरो॥२॥ जव लग जगत भ्रमण नहीं छूटे, ऐसी टेव परो। सच्चे देव धरम गुरु सेऊ, नयनानन्द भरो ॥३॥
३१–रागनी धानीगौरी के जिले में ग़ज़ल के तौर पर
[श्री अनंतनाथ] स्वामी अनंत नाथ चरनों के तेरे चेरे हैं ॥ टेक ॥ सेवा करी न तेरी तकसीर है यह मेरी जी। तुमको नहीं हैं चाह पापों ने हमको घरे हैं ॥ १ ॥ विभ्रम मुझे जो आया, संशय ने फिर भ्रमायाजी। पकड़ी करम ने वाह ले ज्ञार से गेरे हैं ॥२॥ करता हूँ तेरी आला, मेटो जगतका यासाजी। तुमहो त्रिलोकसाह, संजम के भाव मेरे हैं ॥३॥ चरणों में राख लीजै, आनंद नैन दीजै जी।। अव तो बता दे राह, जैसे हैं तैसे तेरे हैं ॥ ४॥
३२-राग श्यापकल्याण [श्रीधर्मनाथ
तारधनी अवमोहि जगत से तारधनी, अब मोहि जगतसे ॥टेक॥ भटकत भटकत भवसागर में, भोगी त्रिविधि विपत्ति घनो ॥ १॥ लख चौरासी जो दुख देखे, सो विपदा नहीं जाय गिनी ॥ २ ॥ धरमनाथ प्रभु नाम तिहारो, धरम करौ मोपै आन बनी ॥ ३॥ करि उद्धार निकारि जगत् से, दृगसुख भक्ति विधान भनी ॥४॥